Monday, December 15, 2008

बदलाव की आहत

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बन गई और अशोक गहलोत ने पांच साल बाद फिर से सत्ता संभाल ली है। वहीं सत्ता का फिर से ख्वाब देखने वाली भाजपा चुनावों से पहले विकास के मुद्दे को लेकर बड़ी-बड़ी डींग हांक रही थी। लेकिन हुआ वही जिसका अंदेशा था। भाजपा अपने कार्यकाल के दौरान निरंतर आपसी कलह मैं उलझी रही और यही कमजोरी उसे विधानसभा चुनाव में ले डूबी। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की एकाधिकारवादी कार्यशैली, सत्ता और संगठन के बीच संवादहीनता तथा पार्टी के नेताओं की आपसी खींचतान से पार्टी अंत तक निजात नहीं पा सकी और इन्हीं कारणों ने उसको सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। पार्टी में नेताओं की बगावत के पीछे वसुंधरा राजे की जिद मुख्य कारण रही। टिकटों के बंटवारे में पार्टी हितों से ऊपर निजी पसंद को महत्व दिया गया है जिसका खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा अपनी आंतरिक कलह पर काबू नहीं पा सकी। और जनता ने वसुंधरा का अधिनायकवादी नेतृत्व अस्वीकार कर दिया। यूं तो कांग्रेस भी कलह से अछूती नहीं थी। प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी सहित कई बडे़ नेताओं की हार का कारण पार्टी की आंतरिक खींचतान को माना जा सकता है। जहां तक इन चुनावों में समीकरणों को पलटने में बागियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही वहीं जातिवाद की भूमिका भी अहम रही। लेकिन विकास का मुद्दा हमेशा जनता पर हावी रहा। जानता ने किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न देकर यह भी साफ कर दिया है कि वह सिर्फ विकास के साथ है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी देखी गई कि बहुमत वाली जातियों के इलाके में उनके खिलाफ छोटी जातियां जबरदस्त तरीके से लामबंद हुई हैं। और मध्यमवगीüय मानी जाने वाली जातियों का राजनीति में प्रभावी उद्भव हुआ। जातिवाद के इस खेल में जहां बागियो ने अपनी पाटिüयों के गणित को गड़बड़ा दिया वहीं बहुजन समाज पार्टी ने 6 सीटें हासिल करके संकेत दे दिए हैं कि आने वाले समय में उसकी राजस्थान में राजनीतिक ताकत बढ़ने जा रही है। जनता ने चाहे रा’य की सत्ता कांग्रेस को सौंप दी हो, लेकिन साफ तौर पर चेता भी दिया है कि अगर उसने जनता का ध्यान नहीं रखा तो तो वह उसे आने वाले समय में दरकिनार भी कर सकती है। इसलिए आने वाले सालों में कांग्रेस को अपने घर को मजबूत करने की ओर ध्यान देना होगा। चाहे जो भी हो, तेरहवीं विधानसभा चुनावों के नतीजे जो रहे हों, लेकिन गौर करने लायक बात यह है कि यह चुनाव राजस्थान की राजनीति में आ रहे बदलावों की आहत को जरूरत रेखांकित कर गए हैं। यहां की जनता परिवर्तन और विकास चाहती है। उसने सामंती मानसिकता वाले नेतृत्व को नकार यह सिद्ध कर दिया है कि वह ऐसी सरकार चाहती है जो उसे विकास के रास्ते पर ले जाए। उसके दुख-दर्द में बराबर की भागीदारी हो।

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