Saturday, March 7, 2009

महिला दिवस है शक्ति दिवस

आसमान सा है जिसका
विस्तारचांद-सितारों का जो सजाए संसार
धरती जैसी है सहनशीलता जिसमें
है नारी हर जीवन का आधार
घर से दफ्तर चूल्हे से चंदा तक
पुरूष संग अब दौड़े यह नार
महिला दिवस है शक्ति दिवस भी
पुरूष नजरिया में हो और सुधार
सृष्टि के आरंभ से नारी अनंत गुणों की खान रही है। वह दया करुणा, ममता और प्रेम की पवित्र मूर्ति है और समय पड़ने पर प्रचंड चंडी का भी रूप धारण कर सकती है। नारी का त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है। किंतु बदलते समय के साथ यह महसूस किया जाने लगा कि काम, पैसा और मेहनत का मूल्य मानवीय विशेषताओं से आगे निकलने लगा है और महिलाएं इस दौड़ में पीछे रह गई हैं। उनके उत्थान और पुरुषों के समान अधिकार प्रदान करने के लिए विश्व ने कई प्रयास किए और किए जा रहे हैं। 1975 मे अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष का भारत में उद्घाटन करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा था, ऐसा कोई काम नहीं है जिसे महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नही कर सकती। पूर्व की अपेक्षा महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक हिस्सेदारी बढ़ी है। उसने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा कर न सिर्फ पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ा है, बल्कि पुरुष प्रधान समाज का ध्यान भी अपनी ओर आकृष्ट किया है।आज विश्व में महिलाओं का सर्वाधिक शोषण सामाजिक स्तर पर है। परंपराओं के साथ महिला को जोड़ दिया जाता है। परंपराएं सामाजिक सुख और सुविधा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं किंतु इनको बनाए रखने में यदि महिलाओं का सुख और भविष्य दांव पर लगने लगे तो इन्हें बदलने में संकोच नहीं होना चाहिए। इस विषय में विश्व का जनमत धीरे-धीरे मुखर होने लगा है। लेकिन यह बात भी सही है कि इस आर्थिक दुनिया में आर्थिक आजादी के बिना पुरुषों के वर्चस्व को समाप्त नहीं किया

Monday, March 2, 2009

भरतपुर लुट गयो...!


एक लोकोक्ति मुझे काफी दिनों से परेशान किए जा रही थी। और अंदर ही अंदर कचोटती थी। जब भी कोई मुझे उस लोकोक्ति को सुनाता तो मुझे एक अजीब सी फीलिंग होती और में सोचता कि आखिरकार यह लोकोक्ति प्रचलन में आई कैसे? उसको लेकर एक गाना भी बन चुका है। जो काफी लोकप्रिय हो गया था। इस कहावत या लोकोक्ति से मेरी कुछ भावनाएं जुड़ी हुई हैं इसलिए मैं इसकी खोज में जुट गया। और आखिरकर एक दिन कामयाब भी हो गया। आपने `भरतपुर लुट गयो´ वाली लोकोक्ति तो सुनी होगी मैं उसी की बात कर रहा हूं-

इसका सूत्र मिला पं। सुंदरलाला की इतिहास पुस्तक `भारत में अंगरेजी राज´ में मिलता है। कहानी कुछ इस तरह है। भरतपुर को हथियाने के लिए जब अंग्रेजों ने हमला किया तो उन्हें मुंह की खानी पड़ी। और वो भरतपुर का बाल भी बांका नहीं कर सके। अपनी इस विफलता से दुखी होकर जनरल लेक ने गर्वनर जनरल माçर्कवस वेल्जली को इस प्रकार लिखा- `मुझे यह लिखते हुए दुख है कि खाई इतनी चौड़ी और गहरी निकली कि उसे पार करने की जितनी कोशिश की गईं, सब बेकार गईं... हम पर इतनी देर तक जोर से और ठीक निशानों के साथ फसील की तोपो के गोले बरसते रहे कि हमारा बहुत अधिक नुकसान हुआ।´ फिर भी अंग्रेजों ने पूरी तैयारी के साथ 21 जनवरी, 1805 को दूसरे हमले में भरतपुर की घेराबंदी कर बारह दिन तक गोलाबारी की, लेकिन पहले हमले की तरह इस बार भी वे भरतपुर का कुछ न बिगाड़ सके। अंतत: उन्हें पीछे हटना पड़ा। फिर 20 फरवरी को तीसरा हमला किया गया। वह भी बेकार गया। इस तरह तीन-तीन बार के जबरदस्त हमलों को झेलकर भरतपुर की फसीलों ने अंग्रेजों के घमंड को इस बुरी तरह चकना-चूर कर दिया कि अंग्रेजों ने बीस साल तक भरतपुर की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखा। लेकिन भरतपुर उनके दिल में का¡टे की तरह चुभता रहा। तभी तो इन तीन-तीन हमलों की हार के नौ साल बाद भी लॉर्ड मेटकॉफ को लिखना पड़ा कि, `...हमारी सैनिक कीर्ति का अधिकतर भाग भरतपुर में दफन हो गया।´ इसके बाद जाट इतिहास और राजा सूरजमल को पढ़ने पर पूरी तस्वीर उभरकर सामने आई कि भरतपुर के अभेद्य दुर्ग और जाटों की दुर्दम्य जुझारू शक्ति उस कालखंड में अपने सर्वोच्च पर थी और उन्होंने अंग्रेजों को बुरी तरह आतंकित किया और सताया था उसी का बदला अंग्रेजों ने भरतपुर को बुरी तरह लूटकर लिया। कुछ ऐसा भी लिखा हुआ कि भरतपुर की आबादी को बेदर्दी से मारा-काटा गया। जिनके पास कुछ भी नहीं था उन लोगों के बाल तक उखाड़ लिए गए। उन्होंने भरतपुर की जनता को कंगाल बना दिया और किसी के पास कुछ नहीं छोड़ा। तभी से `भरतपुर का लुटना´ लोकोक्ति बन गया।

चाहे जो भी कुछ हुआ हो लेकिन मैं इस बात से सहमत हूं कि भरतपुर ही वह वीर राज्य था जिसने अंगे्रजों के सामने हार नहीं मानी थी। भरतपुर का किला अजेय था और अजेय है। भरतपुर ने अपनी वीरता के दम पर अंग्रेजों को सबसे ’यादा प्रताडि़या था। उसने अन्य राज्यों की तरह अंगे्रजों की गुलामी स्वीकार नहीं की। वह एक शेर की भांति हमेशा दहाड़ता रहा। लेकिन हकीकत में ना कभी भरतपुर लुटा है और न कभी लुटेगा।