Sunday, April 4, 2010

एक सुंदर सा सुमन....
मेरे मन के घर के आंगन में....
खिला हुआ है ...
मेरी आखें उसी की तरफ
एकटक रूकी हुई हैं ...
की वो खिले और अपनी खुशबू बिखेर दे...

मेरे द्वार खुले हुए हैं...
जिसमें से मुझे वही नजर आता है ...
दिन-रात और सुबह-शाम ...
हर पल... हर ख्याल...
बस वही तो होता है, वहां ...कोई और नहीं

मैं सारा दिन उसके साए में गुजार देता हूं
मैं सारी रात उसकी याद में जाग लेता हूं
और एक मौन के साथ उस को देखता रहता हूं ...
पता नहीं कितने जन्मों की ये प्यास है,
जो उसे देखकर भी नहीं ख़त्म होती है,
उसे छूकर भी नहीं बुझती...
उसे पाकर भी नहीं खत्म होती है ...
मैं मन से उसका हाल पूछता हूं...

वह खुला हुआ द्वार...
जिसमे से मैं उसे झांकता रहता हूं,
और देखता रहता हूं...
और बस सिर्फ देखता ही रहता हूं...
वह जानता है, मुझे उसे देखना कितना पसंद है ...

एक सुंदर सा सुमन...
जिसमें मेरा प्यार बसा रहे
एक मासूम से फूल में खुशबू की तरह...
और मैं उस फूल को देखकर ही जी लूं...

एक सुंदर सा सुमन....
जिसमें से उसकी निर्मल खुशबू
बिखरे मेरे तन मन के आंगन में
और मुझे छुए और मदहोश कर दे
कली के उस भंवरे की तरह या फिर पतंगे की तरह...

एक सुंदर सा सुमन...
जिसमें से उसके फूलों, पत्तों और
सूरज की आंख मिचोली की छाया,
मेरे चेहरे पर पड़ती रहे ...
और मैं उस खुदा को शुक्रिया अदा करूं...
जिसने उसे मेरे आंगन में खिलाया

एक सुंदर सा सुमन....
जिसमे से बड़े हौले से भीनी सी सुगंध आए
मेरे दिल पर दस्तक दे
और कहे की,
मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं ...