Monday, March 2, 2009

भरतपुर लुट गयो...!


एक लोकोक्ति मुझे काफी दिनों से परेशान किए जा रही थी। और अंदर ही अंदर कचोटती थी। जब भी कोई मुझे उस लोकोक्ति को सुनाता तो मुझे एक अजीब सी फीलिंग होती और में सोचता कि आखिरकार यह लोकोक्ति प्रचलन में आई कैसे? उसको लेकर एक गाना भी बन चुका है। जो काफी लोकप्रिय हो गया था। इस कहावत या लोकोक्ति से मेरी कुछ भावनाएं जुड़ी हुई हैं इसलिए मैं इसकी खोज में जुट गया। और आखिरकर एक दिन कामयाब भी हो गया। आपने `भरतपुर लुट गयो´ वाली लोकोक्ति तो सुनी होगी मैं उसी की बात कर रहा हूं-

इसका सूत्र मिला पं। सुंदरलाला की इतिहास पुस्तक `भारत में अंगरेजी राज´ में मिलता है। कहानी कुछ इस तरह है। भरतपुर को हथियाने के लिए जब अंग्रेजों ने हमला किया तो उन्हें मुंह की खानी पड़ी। और वो भरतपुर का बाल भी बांका नहीं कर सके। अपनी इस विफलता से दुखी होकर जनरल लेक ने गर्वनर जनरल माçर्कवस वेल्जली को इस प्रकार लिखा- `मुझे यह लिखते हुए दुख है कि खाई इतनी चौड़ी और गहरी निकली कि उसे पार करने की जितनी कोशिश की गईं, सब बेकार गईं... हम पर इतनी देर तक जोर से और ठीक निशानों के साथ फसील की तोपो के गोले बरसते रहे कि हमारा बहुत अधिक नुकसान हुआ।´ फिर भी अंग्रेजों ने पूरी तैयारी के साथ 21 जनवरी, 1805 को दूसरे हमले में भरतपुर की घेराबंदी कर बारह दिन तक गोलाबारी की, लेकिन पहले हमले की तरह इस बार भी वे भरतपुर का कुछ न बिगाड़ सके। अंतत: उन्हें पीछे हटना पड़ा। फिर 20 फरवरी को तीसरा हमला किया गया। वह भी बेकार गया। इस तरह तीन-तीन बार के जबरदस्त हमलों को झेलकर भरतपुर की फसीलों ने अंग्रेजों के घमंड को इस बुरी तरह चकना-चूर कर दिया कि अंग्रेजों ने बीस साल तक भरतपुर की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखा। लेकिन भरतपुर उनके दिल में का¡टे की तरह चुभता रहा। तभी तो इन तीन-तीन हमलों की हार के नौ साल बाद भी लॉर्ड मेटकॉफ को लिखना पड़ा कि, `...हमारी सैनिक कीर्ति का अधिकतर भाग भरतपुर में दफन हो गया।´ इसके बाद जाट इतिहास और राजा सूरजमल को पढ़ने पर पूरी तस्वीर उभरकर सामने आई कि भरतपुर के अभेद्य दुर्ग और जाटों की दुर्दम्य जुझारू शक्ति उस कालखंड में अपने सर्वोच्च पर थी और उन्होंने अंग्रेजों को बुरी तरह आतंकित किया और सताया था उसी का बदला अंग्रेजों ने भरतपुर को बुरी तरह लूटकर लिया। कुछ ऐसा भी लिखा हुआ कि भरतपुर की आबादी को बेदर्दी से मारा-काटा गया। जिनके पास कुछ भी नहीं था उन लोगों के बाल तक उखाड़ लिए गए। उन्होंने भरतपुर की जनता को कंगाल बना दिया और किसी के पास कुछ नहीं छोड़ा। तभी से `भरतपुर का लुटना´ लोकोक्ति बन गया।

चाहे जो भी कुछ हुआ हो लेकिन मैं इस बात से सहमत हूं कि भरतपुर ही वह वीर राज्य था जिसने अंगे्रजों के सामने हार नहीं मानी थी। भरतपुर का किला अजेय था और अजेय है। भरतपुर ने अपनी वीरता के दम पर अंग्रेजों को सबसे ’यादा प्रताडि़या था। उसने अन्य राज्यों की तरह अंगे्रजों की गुलामी स्वीकार नहीं की। वह एक शेर की भांति हमेशा दहाड़ता रहा। लेकिन हकीकत में ना कभी भरतपुर लुटा है और न कभी लुटेगा।

5 comments:

  1. bahut achcha likha hai, hum chahenge ki aap bharatpur ke bare mey aur baaten likhen

    ReplyDelete
  2. bahut achcha likha hai, aage bhi bharatpur ke bare mey jaankari dete rahiye,

    ReplyDelete
  3. जनाब राम मोहन जी,
    फिलहाल आपकी भरतपुर भूमि में प्रवास कर रहा हूँ।
    जाटों के बड़बोलेपन के कारण, जाट शासकों की इस राजधानी के बारे में ज्‍यादा कुछ जानने को नहीं मिल सका था, आपके लेख से मुझे और मेरे जैसे कुछ अन्‍य लोगों को भी सार्थक जानकारी मिली।

    ReplyDelete