भरतपुर राजस्थान का ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी अपनी अजेय वीरता के लिए जाने जाना वाला शहर है। जो कि जिला मुख्यालय होने के साथ संभाग भी है। यह नामकरण राम के भाई भरत के नाम पर किया गया था। लक्ष्मण इस राज्य परिवार के कुलदेव माने गए हैं। इसीलिए यहां पर लक्ष्मण जी का विशाल मंदिर है। इसके पूर्व यह जगह सोगडिया जाट सरदार रुस्तम के अधिकार में थी जिसको महाराजा सूरज मल ने जीतकर 1733 में भरतपुर नगर की नींव डाली। भरतपुर नाम से यह एक स्वतंत्र राज्य भी था। महाराजा सूरलमल के समय भरतपुर राज्य की सीमा विस्तृत भू-भाग पर फैली हुई थीं। भरतपुर को लोहागढ़ के नाम से भी जाना है। अठारहवीं सदी के आरंभ में बनी यहां लोहे की भीमकाय इमारत है। जो अपनी अजय मोर्चाबंदी के कारण अंग्रेजों के अनेक हमलों के बावजूद बची रही। यही एक ऐसा राज्य था जिसको अंग्रेज नहीं जीत पाए थे। इसी लिए भरतपुर अपनी अजेय और वीरता के लिए प्रसिद्ध है। इस दुर्ग की कल्पना व रुपरेखा भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल द्वारा निधाüरित की गई थी। इस दुर्ग में तीन महल हैं। किशोरी महल, महल खास, कोठी खास। यहां पर राजकीय संग्रहालय भी स्थित है। यह शहर कई प्राचीन दुर्गों एवं महलों के लिए भी प्रसिद्ध है। लेकिन एक और चीज इसकी प्रसिद्धि में चार चांद लगाती है वह है भरतपुर का सबसे बड़ा पक्षी अभयारण्य जो 1964 में अभयारण्य और 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। यह 29 वर्ग किलोमीटर में फैला पसरा है। घना पक्षी विहार केवलादेव एशिया में पक्षियों के समूह प्रजातियों वाला सर्वश्रेष्ठ उद्यान है। यह पक्षी प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है।
Wednesday, May 20, 2009
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